जीवन में तृप्ती
आदमी कभी कभी बड़ों के बीच छोटा महसूस करता है
तो कभी कुछ छोटों के मध्य बड़ा होने का अहसास करता है
कोई गरीबी और पैसे से छोटा है ,परन्तु विचारों से बड़ा हो सकता है
कहीं कोई धन बल से बड़ा है ,परन्तु विचारों से छोटा है
कहीं कोई सुकर्मों से धनवान और प्रगतिशील रहता है
तो कोई नीचता व गलत रास्ते अपनाकर धनवान बना रहता है
जीवन की ख़ुशी केवल उच्च पद पाकर नहीं होती है
छोटे व अपनों में खुशियां बांटकर अधिक तृप्ति होती है
जीवन तृप्ति सुकर्मों ,सुविचारों और श्रम संग सुमार्ग पे चलकर आती है
तृप्ति तो बिना भेद भाव सुख व खुशियां बाँटने पर मिलती है
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