Videsh Aur Swadesh-Foreign and own Country
विदेश और स्वेदश
विदेश में पैसा जरूर है ,पर स्वदेश का सुख असीम है
मातृभाषा और मातृभूमि का अहसास कुछ और ही है
मातृभाषा और मातृभूमि का अहसास कुछ और ही है
विदेश में रहता इंसान ,दूसरों में भी अपनों को ढूंढता है
यहाँ वहाँ अपनी ही सँस्कृति को जगह जगह ढूंढता है
प्रगति और ज्ञान की वृद्धी तो अवश्य होती रहती है
परन्तु स्वदेश की कमी , विदेश में सदा बनी रहती है
स्वदेश में भाग्यशालियों को ही अपनों का प्यार नसीब होता है
अपनों से मिलकर ही जीने का अपना अंदाज़ अलग होता है
देश विदेश की दूरी को अब एक दूसरे से सद्भाव भरकर मिटाना होगा
मिल जुलकर हम सबको देश विदेश में अब एक नया स्वर्ग बनाना होगा
यहाँ वहाँ अपनी ही सँस्कृति को जगह जगह ढूंढता है
प्रगति और ज्ञान की वृद्धी तो अवश्य होती रहती है
परन्तु स्वदेश की कमी , विदेश में सदा बनी रहती है
स्वदेश में भाग्यशालियों को ही अपनों का प्यार नसीब होता है
अपनों से मिलकर ही जीने का अपना अंदाज़ अलग होता है
देश विदेश की दूरी को अब एक दूसरे से सद्भाव भरकर मिटाना होगा
मिल जुलकर हम सबको देश विदेश में अब एक नया स्वर्ग बनाना होगा
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